ब्रह्मेश्वर नाथ पाण्डेय: बलिया के विस्मृत बागी क्रांतिकारी

बलिया, उत्तर प्रदेश की वह वीरभूमि जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय अपने बगावती तेवरों के लिए जानी जाती थी। इस भूमि ने न जाने कितने क्रांतिकारियों को जन्म दिया, लेकिन कुछ ऐसे नाम भी हैं जो समय की धूल में खो गए।

ब्रह्मेश्वर नाथ पाण्डेय, जिन्हें लोग झूलन जी के नाम से जानते थे, ऐसे ही एक विस्मृत योद्धा थे, जिनकी गाथा आज फिर से सामने लाना जरूरी है।

ब्रह्मेश्वर नाथ पाण्डेय सिर्फ़ क्रांतिकारी नहीं थे, वे एक प्रखर चिंतकसामाजिक न्याय के पक्षधर, और अंग्रेज़ी भाषा के विशेषज्ञ थे। उनकी अंग्रेज़ी इतनी प्रभावशाली थी कि उस दौर के DM और SP भी उनसे बहस करने से कतराते थे

बलिया के लोग बताते हैं कि जब किसी को सरकारी समस्या होती थी, तो वे झूलन जी का हस्तलिखित पत्र लेकर अधिकारी के पास जाते और तुरंत सुनवाई होती। यह उस युग में अभूतपूर्व सामाजिक प्रभाव का संकेत है, जब आम जनता और अफसरों के बीच गहरी दूरी हुआ करती थी।

झूलन जी ने बलिया के कांग्रेस सेवा दल के कप्तान के रूप में युवाओं को संगठित किया। 1936-37 के आंदोलनों में उन्होंने नेतृत्व किया और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान गड़वार थाना जलाने की घटना में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस घटना के बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ा। बलिया जेल के 1956 के अभिलेख आज भी उनके योगदान की पुष्टि करते हैं।

उनका राष्ट्र प्रेम केवल आंदोलनों तक सीमित नहीं था। जब सरकार ने उन्हें नैनीताल में ज़मीन दी, तो उन्होंने उसे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में दान कर दिया। उनके संपर्क इतने व्यापक थे कि वे पं. नेहरू और घनश्यामदास बिड़ला जैसे नेताओं के निकट माने जाते थे। दिल्ली अधिवेशन में वे अक्सर बलिया का प्रतिनिधित्व करते थे।

इतना प्रभावशाली होना कुछ लोगों को अखर गया। देशभक्ति और जनप्रियता से ईर्ष्या रखने वाले अंग्रेज़ी सत्ता के दलालों ने उन्हें जीवन के मध्य में ही धोखे से मार डाला। जब वे अपने मित्र काशी पाण्डेय के साथ गाँव लौट रहे थे, तभी पीठ पीछे से चाकू मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इस तरह एक बागी योद्धा समय से पहले इस धरती को अलविदा कह गया।

आज जब हम स्वतंत्रता की 79वीं वर्षगाँठ और ‘अमृतकाल’ का उत्सव मना रहे हैं, तब हमें ऐसे भूले-बिसरे नायकों को याद करना चाहिए। ब्रह्मेश्वर नाथ पाण्डेय जैसे सच्चे देशभक्त हमारे राष्ट्र के असली नायक हैं, जिन्हें आज़ादी के बाद भी वो पहचान नहीं मिल सकी, जिसके वे हकदार थे।

✍️ लेखक: श्री रवि कांत पाण्डेय

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